HomeGeneralरूस से परमाणु युद्ध का खतरा फिर भी नाटो के विस्‍तार पर...

रूस से परमाणु युद्ध का खतरा फिर भी नाटो के विस्‍तार पर क्‍यों अड़ा है अमेरिका, समझें अरबों का खेल

कीव

द्वितीय विश्‍वयुद्ध के बाद सोवियत संघ से निपटने के लिए बने उत्‍तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के विस्‍तार को लेकर अमेरिका और रूस के बीच जंग जैसे हालात हैं। रूस ने अपनी सीमा पर नाटो के विस्‍तार को रोकने के लिए यूक्रेन पर हमला बोल दिया है और 19 दिनों से भीषण जंग जारी है। रूस पश्चिमी देशों से आश्‍वासन मांग रहा है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाए। उधर, अमेरिका समेत नाटो देशों ने कहा है कि कोई भी स्‍वतंत्र देश उनके सैन्‍य संगठन में शामिल होने के लिए स्‍वतंत्र है। यही नहीं अमेरिका और अन्‍य नाटो देश यूक्रेन को लगातार घातक हथियारों की सप्‍लाई कर रहे हैं। रूस से परमाणु युद्ध के खतरे के बाद भी अमेरिका नाटो के विस्‍तार पर अडिग है जिसके पीछे उसकी चाल छिपी हुई है। आइए समझते हैं पूरा खेल…..

नाटो की स्‍थापना अप्रैल 1949 में एक संधि पर हस्‍ताक्षर के जरिए हुई थी। इस सैन्‍य संगठन की स्‍थापना का उद्देश्‍य इसके सदस्‍य देशों की सामूहिक सुरक्षा है। इसका मतलब यह है कि अगर किसी सदस्‍य देश पर विदेशी हमला होता है या खतरा पैदा होता है तो उसकी सामूहिक रक्षा की जाएगी। नाटो ने बोस्निया और हर्जेगोविना, कोसोवो और लीबिया संकट के दौरान हस्‍तक्षेप किया था। नाटो की स्‍थापना के समय इसके 12 संस्‍थापक सदस्‍य देश थे। अब इन सदस्‍यों की संख्‍या 30 तक पहुंच गई है। नाटो की इसे और बढ़ाने की योजना है।

Russia Ukraine War: रूस और यूक्रेन में 19 दिनों से भीषण जंग, पुतिन- जेलेंस्‍की नहीं, ये होंगे असली विजेता

रूस के प्रभाव वाले देशों को भी बनाया गया नाटो का सदस्‍य

नाटो ने बोस्निया एंड हर्जेगोविना, जार्जिया और यूक्रेन को ‘इच्‍छुक सदस्‍य’ देशों की सूची में शामिल कर रखा है। 1990 के दशक में सोवियत संघ के पतन के बाद पश्चिमी देशों ने रूस से वादा किया था कि इस सैन्‍य संगठन को खत्‍म कर दिया जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वर्ष 1997 में नाटो का सदस्‍य उन देशों को भी बनाया गया जो रूस के प्रभाव वाले इलाके थे। इनमें पोलैंड, लिथुआनिया, लाटविया, रोमानिया, इस्‍टोनिया आदि शामिल हैं। रूस के विरोध के बाद भी नाटो देशों की संख्‍या को अमेरिका लगातार बढ़ाता जा रहा है, इसके पीछे बड़ा कारण छिपा हुआ है।

अमेरिकी अखबार न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक नाटो के विस्‍तार का सीधा संबंध अमेरिका की विशालकाय रक्षा कंपनियों से जुड़ा हुआ है। लॉकहीड मार्टिन, रेथियान जैसी कंपनियां अमेरिकी सरकार पर दबाव बनाती रहती हैं कि वे नाटो का विस्‍तार करें ताकि उनके एक विशालकाय बाजार पैदा हो। दुनिया के अरबों डॉलर के हथियारों के बाजार पर अमेरिका के इन दिग्‍गज कंपनियों का दबदबा है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोई देश नाटो का सदस्‍य बनता है तो उसे सैन्‍य संगठन के नियमों को मानना होगा और उसके पश्चिमी देशों के अरबों डॉलर के हथियारों और उपकरणों को लेना जरूरी होगा।

jevalin-missile

यूक्रेन को अमेरिका ने दी हैं जेवलिन मिसाइलें


नाटो में शामिल देश को खरीदने पड़ते हैं अरबों डॉलर के हथियार

इसके तहत अगर कोई देश अमेरिकी कंपनियों से फाइटर जेट लेता है तो उसे फ्लाइट सिमुलेटर, कलपुर्जे, इलेक्‍ट्रोनिक्‍स और इंजन में सुधार के उपकरण लेने होंगे। इसी तरह से उस देश को ट्रांसपोर्ट प्‍लेन, यूट‍िल‍िटी हेलिकॉप्‍टर, अटैक हेलिकॉप्‍टर लेना होगा। इसके अलावा आधुनिक सेना के जरूरी सैन्‍य संचार उपकरण, कंप्‍यूटर, रेडार, रेडियो और अन्‍य उपकरण शामिल हैं। इन सबकी बिक्री से पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका और ब्रिटेन की रक्षा कंपनियों को जमकर कमाई होती है। अमेरिका ने हाल ही में जर्मनी समेत कई देशों से एफ-35 फाइटर जेट बेचने का करार किया है।

नाटो के विस्‍तार को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकी रक्षा कंपनियां देश में राष्‍ट्रपति चुनाव में शामिल उम्‍मीदवारों को अरबों डॉलर का ‘चंदा’ देती हैं। अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव दुनिया में सबसे महंगा होता है और यही वजह है कि इन कंपनियों के ‘दान’ के अहसान तले प्रत्‍येक राष्‍ट्रपति दबा होता है। चुनाव में जीत के बाद ये कंपनियां राष्‍ट्रपति पर जोर देती हैं कि वे उनके बिजनस को बढ़ावा दें। यही वजह रही कि साल 1997 में नाटो के विस्‍तार के बाद पूर्वी यूरोप के देशों ने भी सोवियत फाइटर जेट और हथियारों की बजाय अमेरिकी हथियारों को तवज्‍जो देना शुरू किया।

Zelensky Warn NATO: यूक्रेनी राष्‍ट्रपति जेलेंस्‍की ने दी चेतावनी, नो फ्लाई जोन घोषित करें, नहीं तो नाटो तक पहुंचेंगी रूसी मिसाइलें

हथियारों के बाजार पर अमेरिका का दबदबा

अभी पोलैंड ने करीब 6 अरब डॉलर के टैंक सौदे को अमेरिका के साथ मंजूरी दी है। इसके अलावा रोमानिया समेत कई और देशों ने अमेरिका से बड़े पैमाने पर हथियार खरीदे हैं। पूर्व अमेरिकी राष्‍ट्रपति बिल क्लिंटन ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘नाटो का विस्‍तार, हमारे राष्‍ट्रीय हित में है।’ रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोई देश नाटो में शामिल होता है तो उसे अरबों डॉलर का खर्च करना पड़ता है। नाटो में शामिल होने वाले देश को अपना रक्षा बजट बढ़ाना पड़ता है। इसका सीधा फायदा अमेरिकी कंपनियों को होता है।

दुनियाभर में हथियारों की खरीद बिक्री करने वाली संस्‍था सिप्री के मुताबिक हथियारों के बाजार में अमेरिकी कंपनियां सबसे आगे हैं। विश्‍व की 100 टॉप कंपनियों में अमेरिका का नंबर सबसे ऊपर है। अमेरिका की 41 कंपनियों ने साल 2020 में 285 अरब डॉलर की बिक्री की है। यह वैश्विक स्‍तर पर कुल हथियार बिक्री का 54 फीसदी है। इन टॉप 100 कंपनियों ने साल 2020 में 531 अरब डॉलर के हथियार बेचे। हथियारों की यह बिक्री लगातार बढ़ती जा रही है।


Read More

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here